हिमाचल प्रदेश के नूरपुर में एक बड़ी ही रहस्यमय गुफा है। दरअसल जब रावण कैलाश पर्वत पर अपना कब्जा करने आया था, तब नूरपुर की पहाड़ियों पर ही भगवान शिव ने उसे सैकड़ों साल तक अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था। जब भगवान शिव की शक्ति के आगे रावण का बस नहीं चला तो वह शिवभक्त हो गया। फिर रावण ने सालों तक यहां शिव की आराधना की थी। इस गुफा में सैकड़ों शिवलिंग हैं।
रावण की तपस्या से जब भगवान शिव खुश होकर प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा कि इस गुफा में सैकड़ों शिवलिंग हैं लेकिन एक जो सबसे बड़ा शिवलिंग है, उसे मैं अपने साथ ले जाना चाहता हूँ। रावण ने शिव से कहा, कि आप उस शिवलिंग में साक्षात प्रकट हो जाइए जिसे मैं अपने साथ लेकर जाना चाहता हूँ।
भगवान शिव ने कहा ठीक है, तुम उस शिवलिंग में मुझे लेकर चलो। लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि कुछ भी हो जाए तुम मुझे रास्ते में नीचे नहीं उतारोगे। इसके बाद रावण उस महाशिवलिंग को लेकर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद रावण शिव की बात भूलने लगा। कुछ और आगे बढ़ा तो उसे बहुत तेज लघु शंका का अहसास हुआ। उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया।
जब लघु शंका से वापस आकर वो शिवलिंग को उठाने लगा तो शिवलिंग नहीं उठा। फिर रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ। जिस जगह पर रावण ने शिवलिंग को उतारा था, उस जगह को आज बैजनाथ कहते हैं। आज भी बैजनाथ में वह पुराना मंदिर है जहां रावण ने शिवलिंग को नीचे उतारा था। शास्त्रों के मुताबिक, वहां पर रावण काफी दिनों तक रुक गया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या करे। क्योंकि वह शिवलिंग को न तो अपने साथ ले जा सकता था और न ही वहां छोड़ कर जा सकता था।
इसलिए रावण वहां रुककर शिवलिंग की तपस्या करने लगा। यूँ ही साल दर साल समय निकलता गया। लेकिन भगवान शिव प्रकट नहीं हुए। तब रावण ने एक नया तरीका सोचा। रावण ने शिव को प्रकट करने के लिए अपने सिर काटने का फैसला कर लिया। रावण को लगा कि एक सिर काटते ही भगवान शिव प्रकट हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रावण फिर चिंता में पड़ गया।
इसके बाद उसने अपने दूसरे सिर की बलि दे दी। लेकिन शिव नहीं आए। फिर एक-एक कर रावण ने अपने नौ सिरों की बलि दे दी। रावण अपना दसवां सिर काटने ही जा रहा था कि भगवान शिव प्रकट हो गए। रावण ने शिव से कहा कि बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए और मेरे साथ चलिए। लेकिन भगवान ने रावण की बात नहीं मानी।
शिव ने एक-एक कर रावण के नौ सिरों को जिंदा कर दिया और कहा कि जाओ तुम फिर पहले की तरह बलशाली हो जाओगे। तुम पर मेरी कृपा बनी रहेगी। लेकिन जो वचन मैंने तुमको दिया था वो व्यर्थ नहीं जाएगा। इसलिए अपने मन को नियंत्रित करो और जाओ। तुम हरदम मेरे सबसे प्रिय भक्त रहोगे।
हिमाचल प्रदेश के नूरपुर इलाके के लोग आज भी दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाते हैं। कुछ लोगों ने ऐसी कोशिश की लेकिन ऐसा करने से पूरा इलाका महामारी की चपेट में आ गया। इलाके के लोगों का कहना है कि रावण को शिव का वरदान था कि उसका कोई तिरस्कार नहीं कर सकता। नूरपुर में शिव के मंदिर का नाम डिबकेश्वर मंदिर है।
जिस गुफा में रावण ने तपस्या की थी, कहा जाता है कि गुफा से होकर एक रास्ता अमरनाथ को जाता है तो दूसरा रास्ता गुफा के अंदर से ही हरिद्वार तक जाता है। मंदिर के चारों ओर झरने बहते रहते हैं। उस जगह पर एक सरोवर भी है। शास्त्रों के अनुसार, रावण जिस जगह से शिवलिंग को उठाकर ले गया था, वह लिंग उसी सरोवर में स्थापित था। जब रावण ने शिवलिंग को उखाड़ा तो उस जगह एक गड्ढा बन गया जो बाद में सरोवर में परिवर्तित हो गया।
उस सरोवर की सबसे खास बात यह है कि पिछले सैकड़ों साल में कई बार उस इलाके में अकाल की नौबत आई। लेकिन सरोवर का जल कभी नहीं सूखा। मान्यता तो ये है, कि किसी भी तरह के चर्म रोग हो उस सरोवर में स्नान करने के बाद ठीक हो जाते हैं।
नूरपुर से बैजनाथ की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। देश ही नहीं दुनिया भर के शिव भक्त वहां जाते हैं। वहां के बैजनाथ मंदिर में वही शिवलिंग स्थापित है जिसे रावण लंका लेकर जा रहा था। जिसके ऊपर अब चांदी का लेप लगा दिया गया है। मंदिर में पुजारी के मुताबिक शिवलिंग का आकार इतना बड़ा है कि जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।