कावड़ यात्रा में क्यों करते हैं बोल बम का उद्घोष

दक्ष प्रजापति, भगवान शंकर के श्वसुर थे और उन्होंने एक बार कोई यज्ञ किया। उस यज्ञ में राजा दक्ष ने शंकर जी को निमंत्रण नही भेजा परंतु पार्वती जी अपने पिता के घर बिना निमंत्रण के ही चली गयी। वहां जाने पर जब पार्वती जी ने देखा कि उनके पति के लिए यज्ञ में निमंत्रित अन्य लोगो की तरह कोई स्थान नही रखा गया है तो वह क्रोध में आकर यज्ञ में भस्म हो गयीं।

जिसके बाद भगवान शिव ने दक्ष का मस्तक काट दिया, मगर फिर देवताओं के प्रार्थना करने पर बकरे का सर दक्ष के धड़ में जोड़ दिया। दक्ष प्रजापति के धड़ पर लगे बकरे के सिर से तब उनके मुँह से यह बम बम की ध्वनि निकली जो भगवान शिव को प्रिय लगी। साथ ही शिव जी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो तेरी तरह गाकर बजा कर मेरी यह स्तुति करेगा, मैं उससे प्रसन्न रहूँगा। तभी से यह गल बजाने की प्रथा का प्रारम्भ हुआ है गल बजाने से बम शब्द का उच्चारण होता है। 

बम शब्द का अर्थ होता है खाली हो जाना। भोले के भक्त कांवड़ में जल भर कर जाते है और कहते है कि हे भोले शंकर हम तुम्हारे पास बिलकुल खाली हो कर आ रहे है। अर्थात हम काम क्रोध लोभ सबसे खाली होकर तेरी शरण में आ रहे है हमारी सेवा को स्वीकार करना।


डिम डिम डिमकत डिम्ब डिम्ब डमरू पाणौ सदा यस्य वै।

फुं फुं फुंकत सर्प जाल ह्रदयं घं घंट घंतार्णवं।।

भं भं भमकत भम्भ भम्भ नयनं कारुण्य पूर्णा करम।

बम बम बमकत बम्ब बम्ब बहनम ध्यायेत सदा शंकरं।।


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