अष्ट नाग कुल

अष्ट नाग कुल
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महाभारत : पाताल लोक में कैसे बचाई थी नागों ने भीम की जान, ऐसे बने थे महाबलशाली
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नागलोक ले जाता है ये रास्ता, सिर्फ कुछ दिनों की मिलती है परमिशन
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भारत में पाई जाने वाली नाग जातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। भारत में आज नाग, सपेरा या कालबेलियों की जाति निवास करती है। यह भी सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। नाग और सर्प में भेद है। नागों के अष्टकुल के बारे में जिनकी होती है नागपंचमी पर पूजा
कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-
1.अनंत (शेष),
2.वासुकि,
3.तक्षक,
4.कर्कोटक,
5.पद्म,
6.महापद्म,
7.शंख और
8.कुलिक।
इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:-
1.वासुकी,
2.तक्षक,
3.कुलक,
4.कर्कोटक,
5.पद्म,
6.शंख,
7.चूड़,
8.महापद्म और
९.धनंजय।
कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे-
1.अनंत,
2.वासुकी,
3.तक्षक,
4.कर्कोटक और
५.पिंगला।
शेषनाग ने भगवान विष्णु तो उनके छोटे भाई वासुकी ने शिवजी का सेवक बनना स्वीकार किया था।
उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के।
कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप या सर्प, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।
भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं-
नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है,
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
ऐतिहासिकों के अनुसार 'नाग' शक जाति की एक शाखा थी जो हिमालय के उस पार रहती थी । तिब्बतवाले अपने को नागवंशी और अपनी भाषा को नाग भाषा कहते हैं । जनमेजय की कथा से पुरुवंशियों और नागवंशियों के वैर का आभास मिलता है । यह वैर बहुत दिनों तक चल ता रहा । जब सिकंदर भारत में आया तब पहले पहल उससे तक्षशिला का नागवंशी राजा मिला जो पंजाब के पौरव राजा से द्रोह रखता था । सिकंदर के साथियों ने तक्षशिला के राजा के यहाँ बडे बडे साँप पले देखे थे जिनकी पूजा होती थी ।
रांगा / सीसा (धातु) । विशेष— भावप्रकाश में लिखा है कि वासुकि एक नागकन्या को देख मोहित हुए । उनके स्खलित वीर्य से इस धातु की उत्पत्ति हुई ।
नाग नक्षत्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] अश्लेषा नक्षत्र ।
महाभारत : पाताल लोक में कैसे बचाई थी नागों ने भीभ की जान, ऐसे बने थे महाबलशाली
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हस्तिनापुर की राजगद्दी को लेकर महाभारत युद्ध हुआ था। धर्म और अधर्म की इस लड़ाई में बहुत से अनुचित तरीकों का प्रयोग किया गया था. धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन जो कभी धर्म के रास्ते पर नहीं चला. उसने हमेशा राज्य पर राज करने के लिए गलत तरीका ही अपनाया. वो हमेशा से पांच पांडवों से से वह बेहद नफरता किया करता था और हर समय उन्हें मारने का षड्यंत्र रचा करता था. पांच पांडवों में से भीम को वह अपना परम शत्रु मानता था।
दुर्योधन ने भीम को मारने के लिए रचा षड्यंत्र
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दुर्योधन मलयुद्ध में माहिर थे. भीम भी इस खेल में परांगत थे. बचपन से ही भीम दुर्योधन को इस खेल में चुनौती देते आए थे. इस कारण भी दुर्योधन बचपन से ही भीम से अधिक शत्रुता रखता था. दुर्योधन का ऐसा मानना था कि यदि किसी तरह से वह भीम को खत्म कर दे तो इसके बाद युधिष्ठिर, अर्जुन और सभी भाइयों को बंदी बनाकर संपूर्ण राज्य पर राज करेगा. मामा शकुनि दुर्योधन को इसके लिए लगातार प्रेरित करता रहता था. इसके ही चलते दुर्योधन ने भीम को कालकूट विष देने की योजना बनाई।
भीम को मारने के लिए दुर्योधन ने दिया विष
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शकुनि के प्रोत्साहित करने के बाद दुर्योधन ने एक बार भीम को जहर देकर मारने की योजना बनाई, इसके लिए दुर्योधन ने पूरा एक षड्यंत्र रचा, दुर्योधन सभी पांडवों को जल विहार में आनंद करने के लिए बुलाया इसके लिए दुर्याेधन ने गंगा नदी के किनारे सभी लोगों के रहने रूकने और खाने पीने के लिए विशेष इंतजाम कराए। भीम को मारने के लिए दुर्याेधन ने उदयनक्रीडन नाम का स्थल विशेष तौर पर विकसित कराया जिसमें पांडवों के लिए हर सुविधा की व्यवस्था की गई, दुर्योधन के आग्रह करने पर सभी पांडव यहां पर पहुंचे, भीम के लिए दुर्योधन ने विशेष पकवान बनवाए लेकिन इसमें उसने कालकूट नाम का खतरनाक विष मिला दिया, इस विष के सेवन से भीम बेहोश हो गए, दुर्योधन ने भीम को रस्सियों से बांधकर गंगा नदी में धकेल देता है।
भीम पर सांपों ने बोला हमला
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भीम बेहोशी की हालत में पाताल लोक जिसे नागलोक भी कहा जाता है वहां पर पहुंच गए. बेहोशी के हालत में भीम पर नागों ने हमला बोल दिया. सांपों के डसने के कारण भीम का जहर कम होने लगा. सांपों के डसने के कारण भीम का पूरा जहर उतर गया और वे होश में आ गए. होश में आते ही भीम को नागलोक के राजा वासुकी के सामने पेश किया गया. जहां पर वासुकी के साथी सर्प आर्यक ने भीम को पहचान लिया. आर्यक भीम के नाना के नाना थे. नाग राजा वासुकी को जब यह बात पता चलती है तो वो बहुत प्रसन्न होते हैं और भीम को उपहार देने का आदेश देते हैं।
इस तरह से भीम को प्राप्त हुई हजारों हाथियों की शक्ति
वासुकी के उपहार देने के आदेश पर आर्यक कहते हैं कि महाराज ये धन और रत्न लेकर क्या करेंगे आपका आदेश हो तो जो विष भीम के शरीर में शेष रह गया उसे पीनें की आज्ञा दें ऐसा करने से भीम के भीतर हजारों हाथियों का बल आ जाएगा. वासुकी आर्यक को जहर पीने की आज्ञा देते हैं. इसके बाद भीम शक्तिशाली बन जाते हैं।
नागलोक ले जाता है ये रास्ता, सिर्फ कुछ दिनों की मिलती है परमिशन
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सतपुड़ा के घने जंगलों के बीच एक ऐसा रहस्यमयी रास्ता है जो सीधा नागलोक जाता है। इस दरवाजे तक पहुंचने के लिए खतरनाक पहाड़ों को चढ़ाई और बारिश में भीगे घने जंगलों की खाक छानना पड़ता है। तब जाकर आप नागद्वारी पहुंच सकते हैं। ये जगह मौजूद है मप्र के एकमात्र हिल स्टेशन पचमढ़ी के जंगलों में।
साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए मिलती है यहां जाने की परमिशन
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- साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां प्रवेश वर्जित होता है। रिजर्व फॉरेस्ट प्रबंधन यहां जाने वाले रास्ते का गेट बंद कर देता है।
- हर साल नागपंचमी पर यहां एक मेला भरता है। जिसमें भाग लेने के लिए लोग जान जोखिम में डालकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं।
- सावन में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
नागदेव की कई मूर्तियां हैं यहां मौजूद
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- नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं।
- स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं।
- मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
- नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में आपका सामना कई जहरीले सांपों से हो सकता है, लेकिन राहत की बात है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
- सुबह से श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं। 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है।
100 साल से चालू है यात्रा
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- नागद्वारी मंदिर की धार्मिक यात्रा को के 100 साल से ज्यादा हो गए हैं। लोग 2-2 पीढ़ियों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं।
- सबसे पहले 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ।
- इस बार ये यात्रा 18 जुलाई से शुरू हुई है और 28 जुलाई तक चलेगी। जल गली से 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा में भक्तों को दो दिन लगेंगे। गुफा में विराजमान नाग देवता के दर्शन भक्त करते हैं।
- नागद्वार मंदिर की यात्रा श्रद्धालु सुबह ही शुरू करते हैं, ताकि शाम तक गुफा तक पहुंच जाएं।
जंगल में जंगली जानवरों और अन्य जहरीले जीवों का खतरा रहता है।
- यात्रा में पिछले साल करीब 4 लाख श्रद्धालु आए थे। इस बार आंकड़ा बढ़ सकता है।
अमरनाथ जैसी है नागद्वारी की यात्रा
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बाबा अमरनाथ और नागद्वारी की यात्रा सावन मास में ही होती है। बाबा अमरनाथ की यात्रा के लिए ऊंचे हिमालयों से होकर गुजरना होता है। जबकि नागद्वारी की यात्रा सतपुड़ा की घनी व ऊंची पहाडिय़ों में सर्पाकार पगडंडियों से पूरी होती है। दोनों ही यात्राओं में भोले के भक्तों को धर्म लाभ के साथ ही प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं।
ये है मान्यताएं
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- पहाड़ियों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से कालसर्प दोष दूर होता है।
- नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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