महिमा बाबा बालक नाथ जी की

संस्कृति के बारे में संत विनोबा भावे ने लिखा है - भूख लगने पर खाना खाना प्रकृति है, छीन कर खाना विकृति है और मिल-बांट कर खाना संस्कृति है। इसलिए आज के भाग-दौड़ के युग में अपनी संस्कृति में निहित मानवीय मूल्यों के प्रति जन अनुराग जागृत करने की जरूरत है। इसके लिए हमारे धर्मस्थल हैं क्योंकि इनके साथ लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास जुड़ा होता है। 
 
हिमाचल प्रदेश में अनेकों धर्मस्थल हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध, उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्धपीठ है। यह पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है। इसका प्रबंधन हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में देवी-देवताओं के अलावा ऐतिहासिक संदर्भ में नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में विचरण करते हैं।

इस प्रकार के नौ नाथों और चौरासी सिद्धों में बाबा बालक नाथ का नाम भी आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। सतयुग में यह स्कन्द, त्रेता युग में कौल और द्वापर युग में महाकौल के नाम से जाने गए।
 
प्राचीन मान्यता के अनुसार, इन्हें भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है। कुछ भक्त बाबा जी को नौ नाथ - चौरासी सिद्धों की परम्परा में आने वाले बालयोगी (बाल रूप) के रूप में पूजते हैं। ऐसी मान्यता है कि बाबा बालक नाथ जी बाल्यावस्था (अल्पायु) में ही अपना घर छोड़कर चारधाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुंच गए।

शाहतलाई में ही रहने वाली माई रत्नो नामक महिला ने, जिसकी कोई संतान नहीं थी, बाबा जी को अपना धर्म पुत्र बनाया और बाबा जी ने 12 साल माता रत्नो की गऊएं चराईं। एक दिन माता रत्नो के ताने मारने पर बाबा बालक नाथ जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं। इस घटना की जब आस-पास के क्षेत्र में चर्चा हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की शक्ति देख कर बहुत प्रभावित हुए।
 
गुरु गोरख नाथ को जब पता चला कि एक बालक शाहतलाई में बहुत शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा जी को अपना शिष्य बनाना चाहा, परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ जी बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने बाबा जी को जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा बालक नाथ जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत जा पहुंचे। जहां आजकल बाबा बालक नाथ जी की गुफा अधिष्ठित है और बाबा जी का सुंदर मंदिर बना हुआ है।

इस मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बाबा जी का अखंड धूणा सबको बहुत आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेजस्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूने के निकट ही बाबा जी का विशाल चिमटा है। बाबा जी की गुफा के निकट ही संगत के बैठने के लिए 2 बड़े हाल हैं।

गुफा पर महिलाओं का जाना वर्जित है। बाबा जी की गुफा के सामने एक बहुत बड़ी गैलरी का निर्माण किया गया है जहां से महिलाएं बाबा जी की गुफा के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। बाबा जी के धूणे की भभूति और धूप भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलती है। बताया जाता है कि जब बाबा जी ने गुफा के अंदर समाधि ली तो वहां एक दियोट (दीपक) जलता रहता था जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी। इसलिए लोग बाबा जी को दियोट सिद्ध के नाम से भी जानते हैं।
 
बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थल गुफा है जो प्राकृतिक है। गुफा के पीछे पहाड़ी पर शिखर शैली का नया मंदिर बना है वहां भगवान शिव का मंदिर भी है। यहां करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है जो भक्तों की सुविधाओं के लिए लगातार खर्च किया जाता है। 

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