भगवान शिव और देवी दुर्गा का रूप पार्वती की ऐसी बहुत सी शिक्षाएं हैं जिनका आज के समय में भी बहुत महत्व है। यह शिक्षाएं आज भी आपके काम आ सकती हैं। फिर चाहे वो लीडरशीप की बात हो या मैनेजमेंट की, इन शिक्षाओं के अनुसार कार्य करेंगे तो सफलता जरूर हाथ लगेगी। यहां हम देवी दुर्गा और भगवान शिव की ऐसी 6 बातें बताने जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप भी हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
सफलता और कठिनाईयां
कहा जाता है कि जब अमृत की चाह के लिए समुद्र मंथन किया गया तो अमृत के साथ-साथ विष भी निकला। देवता इंद्र केवल अमृत को अपने पास रखना चाहते थे और उन्हें विष न पीना पड़े। इसी उद्देश्य से उन्होंने विष भगवान शिव को दे दिया और शिव ने उसे अपने कंठ में रोक लिया। उनके इस एक कार्य से शिव महादेव यानि देवों के देव बन गए जबकि इंद्र केवल देव कहलाए।
जरूरत कल्पना है
जब सती ने भगवान शिव को अपना घर दिखाने के लिए कहा तो भगवान शिव ने कहा कि पूरी प्रकृति ही उनकी घर है। सती के पूछने पर उन्होंने बताया कि गर्मी लगने पर वे घने देवदार के वृक्षों के नीचे बैठ जाते हैं, सर्दी में कैलाश की चोटी पर चले जाते हैं और आग की जरूरत पड़ने पर प्रकृतिक रूप से चल रही अग्नि का प्रयोग करते हैं। यह सब सुनकर सती ने शिव को भोला नाम दिया और वह उनसे प्रेम करने लगीं। भगवान शिव का यह संसार रूपी घर इशारा करता है कि जरूरतें महज एक कल्पना होती हैं। हम इनके बिना भी जी सकते हैं लेकिन हमने मन में यह भाव बैठा रखा है कि हम इसके बिना या उसके बिना नहीं जी सकते जबकि यह सब जरूरतें केवल कल्पना होती हैं।
मां दुर्गा- एकता में बल है
जब राक्षस महिषासुर का वध करने का समय आया तो सभी देवताओं को कहा गया कि वह अपने अंदर की ताकत यानि शक्ति को बाहर निकाल कर उसे मिलाएं ताकि एक शक्तिशाली देवी यानि दुर्गा का जन्म हो सके। इस प्रकार शक्ति वह ताकत है जो हमारे भीतर होती है और दूर्गा रूपी शक्ति बाहरी शक्ति है। और, जब कोई बेइज्जती करता है तो हमारी शक्ति क्षीण होती है।
कैलाश या काशी, कहां जाए मनुष्य
कैलाश में शिव निवास करते हैं जबकि काशी मैदानी इलाकों में गंगा नदी के किनारे बसा है। इन दोनों ही जगहों पर ही शिव के अलग-अलग रूप विराजमान हैं। अब प्रश्न यह है कि शिव के किस रूप को ज्यादा महत्व दिया जाए। उसी तरह आज के कॉर्पोरेट वर्ल्ड में भी शिव के दो रूप हैं- एक बॉस, जो कैलाश है और दूसरा क्लायंट जो काशी है। अब आपको देखना है कि किसे ज्यादा महत्त्व दें।
ऑफिस में प्रजापति और शिव
चंद्र ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति की आज्ञा का पालन नहीं किया। इसपर नाराज होकर दक्ष ने चंद्र को श्राप दे दिया। इस श्राप से मुक्त होने के लिए चंद्र देवता ने इंद्र देव से मदद मांगी। लेकिन इंद्र ने उन्हें शिव जी के पास जाने को कहा। चंद्र देव महादेव के समक्ष कांपते हुए शांति से बैठ गए। जैसे ही शिव ने अपनी आंखें खोलीं उन्होंने स्नेह के साथ चंद्र देव को उठाया और अपने माथे पर सजा लिया। बस इतना था और चंद्र राहत महसूस करने लगे। प्रत्येक ऑफिस में प्रजापति और शिव सरीखे लोग होते हैं। प्रजापति वे होते हैं जो हमें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं और उन सहकर्मियों को शिव का रूप समझना चाहिए जो ऐसी स्थिति में हमें सहारा देते हैं।