शिवभक्तों की श्रद्धा का केंद्र मल्लिकार्जुन

शिव पुराण के अनुसार, श्री शैल पर मल्लिकेश्वर नाम का द्वितीय ज्योतिॄलग है। यह भगवान शिव के अवतार हैं। इनके दर्शन-पूजन से भक्तों को अभीष्ट फल मिलता है। स्कंद ने जब शंकर जी की प्रार्थना की, तब वह अत्यंत प्रेम से कैलाश छोड़ कर पुत्र को देखने की इच्छा से वहां पधारे थे। 

यह दूसरा ज्योतिलिंग दर्शन-पूजन आदि से बहुत सुख देता है और अंत में मोक्ष भी प्रदान करता है, इसमें कोई संशय नहीं है। मल्लिकार्जुन द्वादश ज्योतिलिंग में से एक है, यह ज्योतिलिंग श्रीशैल पर है। वहां 51 शक्तिपीठों में से एक शक्ति पीठ भी है।

माता सती की देह का ग्रीवा भाग जहां गिरा, वहां भ्रमराम्बा देवी का मंदिर है। मनमाड-काचीगुडा लाइन के सिकंदराबाद स्टेशन से एक लाइन द्रोणाचलम तक जाती है। इस लाइन पर कर्नूल टाऊन स्टेशन है। वहां से श्रीशैल 77 मील दूर है। श्रीशैल के शिखर पर वृक्ष नहीं हैं। दक्षिणी मंदिरों के ढंग का यह एक पुराना मंदिर है। एक ऊंची पत्थर की चारदीवारी भी है जिस पर हाथी-घोड़े बने हैं। इस परकोटे के चारों ओर द्वार हैं। द्वारों पर गोपुर बने हैं। इस प्राकार के भीतर एक प्राकार और है। दूसरे प्राकार के भीतर श्रीमल्लिकार्जुन का निजमंदिर है।

यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है। लेकिन मंदिर में मल्लिकार्जुन शिवलिंग है। यह शिवलिंग मूर्ति लगभग आठ अंगुल ऊंची है और  पाषाण के अनगढ़ अरघे में विराजमान है। मंदिर के बाहर एक पीपल-पाकर का सम्मिलित वृक्ष है। इसके चारों ओर पक्का चबूतरा है। आस-पास बीस-पच्चीस छोटे-छोटे शिव मंदिर हैं। मंदिर के चारों ओर बावलियां हैं और दो छोटे सरोवर भी हैं। 

श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती देवी का मंदिर है। यहां इनका नाम मल्लिका देवी है। मल्लिकार्जुन के निजमंदिर का द्वार पूर्व की ओर है। द्वार के सम्मुख सभा मंडप है। उसमें नंदी की विशाल मूर्ति है। मंदिर के द्वार के भीतर नंदी की एक छोटी मूर्ति और है।

शिवरात्रि को यहां शिव-पार्वती विवाहोत्सव होता है। मंदिर के पूर्व द्वार से एक मार्ग कृष्णा नदी तक गया है। उसे यहां पाताल गंगा कहते हैं। पाताल गंगा मंदिर से लगभग पौने दो मील की दूरी पर है। आधा मार्ग सामान्य उतार का है और उसके पश्चात 852 सीढिय़ां हैं। ये सीढिय़ां खड़े उतार की हैं। बीच-बीच में चार स्थान विश्राम करने के लिए बने हैं। 

पर्वत से नीचे की ओर आने पर कृष्णा नदी है। यात्री वहां स्नान करके चढ़ाने के लिए जल ले जाते हैं। ऊपर लौटते समय खड़ी चढ़ाई बहुत कष्टकर होती है। यहां पास में कृष्णा में दो नाले मिलते हैं। उस स्थान को लोग त्रिवेणी कहते हैं। कृष्णा के तट पर पूर्व की ओर जाने पर एक कंदरा मिलती है। उसमें देवी तथा भैरव आदि देवताओं की मूर्तियाँ हैं। कहा जाता है कि यह गुफा पर्वत में कई मील भीतर तक चली गई है। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के आस-पास के प्रमुख तीर्थ : 

शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर : मल्लिकार्जुन से छ: मील दूर शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर मंदिर हैं। कुछ यात्री शिवरात्रि से पहले वहां तक जाते हैं। शिखरेश्वर से मल्लिकार्जुन मंदिर के कलश दर्शन का ही महत्व माना जाता है। कहते हैं श्रीशैल के शिखर का दर्शन करने से पुनर्जन्म नहीं होता। 

अंबाजी : मल्लिकार्जुन मंदिर से पश्चिम लगभग दो मील पर भ्रमराम्बा देवी का मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। 

कर्नूल टाऊन : इस नगर के सामने तुंगभद्रा के पार एक शिव मंदिर तथा रामभट्ट-देवल नामक राम मंदिर है। 

आलमपुर : कर्नूल टाऊन से चार मील पहले आलमपुर रोड स्टेशन है। यहां तुंगभद्रा के तट पर भगवान शंकर तथा भगवती के मंदिर हैं। 

महानदी : यह स्थान नंदयाल स्टेशन से दस मील दूर है। यहां भगवान शंकर का मंदिर है। एक ओंकारेश्वर मंदिर भी है।


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