सावन और शिव का भारतीय संस्कृति से गहरा मेल है। सावन के झूलों से लेकर सावन सोमवार की बेलपत्री तक.. सब कुछ मानो भावनाओं को हरा-भरा कर देने वाला हो। सावन के आते ही शिव भक्तों में पूजा अर्चना के लिए नई उमंग का संचार हो जाता है। चारों ओर गूंजने लगते हैं बोल बम.. के जयकारे और हरे व केसरिया रंग से धरती मानो पटने को हो जाती है।
सावन सोमवार को शिवालयों में सुबह से शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है। हर कोई भोले से वरदान मांगने पहुंच जाता है उनके द्वार। शास्त्रों और पुराणों का कहना है, कि श्रावण मास भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है। इस माह में शिवार्चना के लिए प्रमुख सामग्री बेलपत्र और धतूरा सहज सुलभ हो जाता है।
सच पूछा जाए तो भगवान शिव ही ऐसे देवता है, जिनकी पूजा-अर्चना के लिए सामग्री को लेकर किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। अगर कोई सामग्री उपलब्ध न हो तो जल ही काफी है। भक्ति भाव के साथ जल अर्पित कीजिए और भगवान शिव प्रसन्न।
जल चढ़ाओ और जो चाहे मांग लो शिव से -
शास्त्रों के अनुसार, श्रावण मास भगवान शकर को विशेष प्रिय है। अत: इस मास में आशुतोष भगवान शकर की पूजा का विशेष महत्व है। सोमवार शंकर का प्रिय दिन है। इसलिए श्रावण सोमवार का और भी विशेष महत्व है। भगवान शंकर का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। श्रावण मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ करके प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत किया जाता है।
प्रात: काल गंगा या किसी पवित्र नदी, सरोवर या घर पर ही विधि पूर्वक स्नान करने का विधान है। इसके बाद शिव मदिर जाकर या घर में पार्थिव मूर्ति बना कर यथा विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यत ही फलदायी है। इस व्रत में श्रावण महात्म्य और विष्णु पुराण कथा सुनने का विशेष महत्व है।
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