गणेशजी पर सिंदूर चढ़ाना होता है शुभ
श्रीगणेश जी प्रथम आराध्य देव हैं। प्रत्येक शुभ काम का प्रारंभ श्रीगणेशजी के पूजन से होता है। श्रीगणेश जी की प्रतिमा अनेक रूपों में और अनेक प्रकार से लौकिक रूप से स्वीकार की जाती है। सुपारी या साबुत हल्दी पर मौली का धागा लपेटकर और सिंदूर व वर्क से चोला चढ़ाकर भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है।
इसके अतिरिक्त रवि-पुष्य योग या गुरु-पुष्य योग में, सफेद आकडे के पौधे की जड़ को शुद्ध करके और सिंदूर का लेप करके भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है। श्वेत आकडे की जड़ से निर्मित (शुद्ध मुहूर्त में) प्रतिमा व्यापार वृद्धि और आय वृद्धि में बहुत ही सहायक होती है। इसके अलावा चंदन काष्ठ, तांबा, पीतल, सोना, चांदी, पत्थर व पीली मिट्टी द्वारा भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी नियमित पूजा करने से सुख-शांति मिलती है।
इनमें सुपारी, हल्दी, पीली मिट्टी, सफेद आकडे की जड़ आदि से निर्मित प्रतिमा आदि गणेश का स्वरूप होती है, जिनका वेदों में सर्वप्रथम उल्लेख है। शिवजी के विवाह में इन्हीं आदि गणेश का पूजन किया गया था। शिव-गौरी पुत्र जो गणेशजी हैं, वे इन्हीं आदि गणेश के सर्वप्रथम अवतार हैं और इन्हीं गजानन, लम्बोदर गणेश की प्रतिमा पत्थर, काष्ठ, सोना-पीतल आदि धातुओं से निर्मित की जाती है। आदि गणेश की पूजा-अर्चना प्रतिदिन घर व व्यापार स्थल पर स्थापित मंदिर में की जाती है।
तंत्रशास्त्रों में ऐसी मान्यताएं भी हैं कि जो व्यक्ति श्रीगणेशजी की प्रतिमा पर अपने हाथों से घी में मिलाकर शुद्ध सिंदूर व शिंगरफ का चोला चढ़ाते हैं उन्हें पारद (पारा) भक्षण के समान लाभ होता है। श्रीगणेशजी की प्रतिमा पर सिंदूर का लेप करके चोला चढ़ाना अति आवश्यक माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार- एक सिन्धु नामक असुर का वध श्रीगणेश जी ने किया और उसके शरीर से निकले सिंदूर का लेप श्रीगणेशजी ने क्रोधित अवस्था में अपने शरीर पर लगा लिया।
यह सिन्धु अधर्म का पुत्र था और लोगों के घरों में घुसकर परिवार में अशांति, हानि और कलह उत्पन्न करता था। यह असुर श्रीगणेशजी के सिंदूर लिप्त स्वरूप से यह भयभीत होता है इसलिए मुख्य द्वार पर गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करने से बुरी नजरों से घर की रक्षा भी होती है। मुख्य द्वार पर श्रीगणेशजी के दाएं-बाएं दोनों तरफ सिंदूर के धोल से स्वास्तिक और रिद्धि-सिद्धि व शुभ-लाभ लिखने की परंपराएं हैं। इस तरह के मांगलिक चिह्नों व नामों का अंकन घर में सुख-शांति का संचार करता है। आयुर्वेद में सिंदूर को व्रण शोधक और अस्थि योजक माना जाता है।
घावों और टूटी अस्थियों की चिकित्सा हेतु सिंदूर को अन्य औषधियों के साथ प्रयोग में लिया जाता है। स्त्रियां अपनी मांग में सौभाग्य द्रव्य के रूप में सिंदूर लगाती हैं। मांग में सिंदूर लगाने के संबंध में सीताजी और हनुमानजी का किस्सा अत्यंत लोक प्रसिद्ध ही है। गणेशजी के सिंदूर का लेप, सिंदूर को घी या चमेली के तेल में मिलाकर तैयार किया जाता है। सिंदूर का लेप लगाकर चांदी या सोने के वर्क या पत्रों से उन्हें आवरित करके श्रृंगार किया जाता है। व्यक्ति का घर और उसका आजीविका क्षेत्र उसकी जीवन रेखा होते हैं। किसी भी सफल व्यक्ति के जीवन में ग्रहण इन्हीं स्थानों के माध्यम से लगने की संभावना रहती है अत:अपने घर में और आजीविका क्षेत्र या दुकान में गणेशजी की सिंदूर चढ़ी प्रतिमा अवश्य रखनी चाहिए। गणेशजी के प्रतिदिन गंगाजल के छींटे लगाकर, दूर्वा, पुष्पमाला, पुष्प चढ़ाना चाहिए। धूपबत्ती व दीपक से आरती करके एक बेसन के लड्डू का भोग लगाते रहने से अनवरत सुख-शांति व समृद्धि बढऩे लगती है।
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