श्रावण का सम्पूर्ण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है, जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है और रिमझिम फुहारे साधारण व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है। प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रृंगार कर देती है, परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है।
मान्यता है कि, शिव आराधना से सावन मास में विशेष फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे सभी ज्योतिर्लिंगों की विशेष पूजा, अर्चना और अनुष्ठान की बड़ी प्राचीन एवं पौराणिक परम्परा रही है। रुद्राभिषेक के साथ साथ महामृत्युंजय का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा का भी यह महत्वपूर्ण समय रहता है। यह वह मास है जिसके लिए कहा जाता है, जो मांगोगे वही मिलेगा। भोलेनाथ सबका भला करते है।
ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास के महात्म्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है -
शौनक बोले – हे सूत! हे सूत! हे महाभाग! हे व्यासशिष्य! हे अकल्मष! आपके मुख कमल से अनेक आख्यानों को सुनते हुए हम लोगों की तृप्ति नहीं हो रही है, अपितु बार-बार सुनाने की इच्छा बढ़ती जा रही है। तुला राशि में स्थित सूर्य में कार्तिक मास का माहात्म्य, मकर राशि में माघ मास का माहात्म्य और मेष राशि में स्थित सूर्य में वैशाख मास का माहात्म्य और इसके साथ उन-उन मासों के जो भी धर्म हैं, उन्हें आपने भली-भाँति कह दिया, यदि आप के मत में इनसे भी अधिक महिमामय कोई मास हो तथा भगवत्प्रिय कोई धर्म हो तो आप उसे अवश्य कहिये, जिसे सुनकर कुछ अन्य सुनने की हमारी इच्छा न रहे। वैसे भी कहा गया है कि वक्ता को श्रद्धालु श्रोता के समक्ष कुछ भी छिपाना नहीं चाहिए।
सूत जी बोले – हे मुनियों! आप सभी लोग सुनें, मैं आप लोगों के वाक्य गौरव से अत्यंत संतुष्ट हूँ, आप लोगों के समक्ष मेरे लिए कुछ भी गोपनीय नहीं है। दम्भ रहित होना, आस्तिकता, शठता का परित्याग, उत्तम भक्ति, सुनने की इच्छा, विनम्रता, ब्राह्मणों के प्रति भक्ति परायणता, सुशीलता, मन की स्थिरता, पवित्रता, तपस्विता और अनसूया – ये श्रोता के बारह गुण बताये गए हैं। ये सभी आप लोगों में विद्यमान हैं, अतः मैं आप लोगों पर प्रसन्न होकर उस तत्त्व का वर्णन करता हूँ।
एक समय प्रतिभाशाली सनत्कुमार ने धर्म को जानने की इच्छा से परम भक्ति से युक्त होकर विनम्रतापूर्वक ईश्वर – भगवान शिव – से पूछा।
सनत्कुमार बोले – योगियों के द्वारा आराधनीय चरणकमल वाले हे देवाधिदेव! हे महाभाग! हमने आप से अनेक व्रतों तथा बहुत प्रकार के धर्मों का श्रवण किया, फिर भी हम लोगों के मन में सुनने की अभिलाषा है। बारहों मासों में जो मास सबसे श्रेष्ठ, आपकी अत्यंत प्रीति कराने वाला, सभी कर्मों की सिद्धि देने वाला हो और अन्य मास में किया गया कर्म यदि इस मास में किया जाए तो वह अनंत फल प्रदान कराने वाला हो – हे देव! उस मास को बताने की कृपा कीजिए, साथ ही लोकानुग्रह की कामना से उस मास के सभी धर्मों का भी वर्णन कीजिए।
ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार! मैं अत्यंत गोपनीय भी आपको बताऊंगा! हे सुव्रत! हे विधिनन्दन! मैं आपकी श्रवणेच्छा तथा भक्ति से प्रसन्न हूँ। बारहों मासों में श्रावण मास मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है, अतः इसे श्रावण कहा गया है। इस मास में श्रवण - नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण से भी इसे श्रावण कहा गया है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। निर्मलता गुण के कारण यह आकाश के सदृश है इसलिए ‘नभा’ कहा गया है।
इस श्रावण मास के धर्मों की गणना करने में इस पृथ्वीलोक में कौन समर्थ हो सकता है, जिसके फल का सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने के लिए ब्रह्माजी चार मुख वाले हुए, जिसके फल की महिमा को देखने के लिए इंद्र हजार नेत्रों से युक्त हुए और जिसके फल को कहने के लिए शेषनाग दो हजार जिह्वाओं से सम्पन्न हुए। अधिक कहने से क्या प्रयोजन, इसके माहात्म्य को देखने और कहने में कोई भी समर्थ नहीं है। हे मुने! अन्य मास इसकी एक कला को भी नहीं प्राप्त होते हैं। यह सभी व्रतों तथा धर्मों से युक्त है। इस महीने में एक भी दिन ऐसा नहीं है जो व्रत से रहित दिखाई देता हो। इस माह में प्रायः सभी तिथियां व्रतयुक्त हैं।
इसके माहात्म्य के सन्दर्भ में मैंने जो कहा है, वह केवल प्रशंसा मात्र नहीं है। आर्यों, जिज्ञासुओं, भक्तों, अर्थ की कामना करने वाले, मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले और अपने-अपने अभीष्ट की आकांक्षा रखने वाले चारों प्रकार के लोगों – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आश्रम वाले – को इस श्रावण मास में व्रतानुष्ठान करना चाहिए।
सनत्कुमार बोले – हे भगवन! हे सत्तम! आपने जो कहा कि इस मास में सभी दिन एवं तिथियां व्रत रहित नहीं हैं तो आप उन्हें मुझे बताएं किस तिथि में और किस दिन में कौन-सा व्रत होता है, उस व्रत का अधिकारी कौन है, उस व्रत का फल क्या है, किस-किस ने उस व्रत को किया, उसके उद्यापन की विधि क्या है, प्रधान पूजन कहाँ हो और जागरण करने की क्या विधि है, उसका देवता कौन है, उस देवता की पूजा कहाँ होनी चाहिए, पूजन सामग्री क्या-क्या होनी चाहिए और किस व्रत का कौन-सा समय होना चाहिए, हे प्रभो ! वह सब आप मुझे बताएं।
यह मास आपको प्रिय क्यों है, किस कारण यह पवित्र है, इस मास में भगवान का कौन-सा अवतार हुआ, यह सभी मासों से श्रेष्ठ कैसे हुआ और इस मास में कौन-कौन धर्म अनुष्ठान के योग्य हैं, हे प्रभो! यह सब बताएं। आपके समक्ष मुझ अज्ञानी का प्रश्न करने में कितना ज्ञान हो सकता है, अतः आप सम्पूर्ण रूप से बताएं। हे कृपालों! मेरे पूछने के अतिरिक्त भी जो जो शेष रह गया हो उसे भी लोगों के उद्धार के लिए कृपा कर के बताएं।
रविवार, सोमवार, भौमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार के दिन जो करना चाहिए, हे विभो! वह सब मुझे बताइए। आप सबके आदि में आविर्भूत हुए हैं, अतः आपको आदि देव कहा गया है। जैसे एक की विधि बाधा से अन्य की विधि-बाधा होती है, वैसे ही अन्य देवताओं के अल्प देवत्व के कारण आपको महादेव माना गया है। तीनों देवताओं के निवास स्थान पीपल वृक्ष में सबसे ऊपर आपकी स्थिति है।
कल्याण रूप होने के कारण आप शिव हैं और पापसमूह को हरने के कारण आप हर हैं। आपके आदि देव होने में आपका शुक्ल वर्ण प्रमाण है क्योंकि प्रकृति में शुक्ल वर्ण ही प्रधान है, अन्य वर्ण विकृत है। आप कर्पूर के समान गौर वर्ण के है, अतः आप आदि देव हैं, गणपति के अधिष्ठान रूप चार दल वाले मूलाधार नामक चक्र से, ब्रह्माजी के अधिष्ठान रूप छ: दल वाले स्वाधिष्ठान नामक चक्र से और विष्णु के अधिष्ठान रूप दस दल वाले मणिपुर नामक चक्र से भी ऊपर आप के अधिष्ठित होने के कारण आप ब्रह्मा तथा विष्णु के ऊपर स्थित हैं – यह आपकी प्रधानता को व्यक्त करता है। हे देव! एकमात्र आपकी ही पूजा से पंचायतन पूजा हो जाती है जो की दूसरे देवता की पूजा से किसी भी तरह संभव नहीं है।
आप स्वयं शिव हैं, आपकी बाईं जाँघ पर शक्ति स्वरूपा दुर्गा, दाहिनी जाँघ पर गणपति, आपके नेत्र में सूर्य तथा हृदय में भक्तराज भगवान् श्रीहरि विराजमान हैं। अन्न के ब्रह्मारूप होने तथा रास के विष्णु रूप होने और आपके उसका भोक्ता होने के कारण हे ईशान! आपके श्रेष्ठत्व में किसे संदेह हो सकता है। सबको विरक्ति की शिक्षा देने हेतु आप श्मशान में तथा पर्वत पर निवास करते हैं।
पुरुषसूक्त में “उतामृतत्वस्येशानो०” इस मन्त्र के द्वारा प्रतिपादन के योग्य हैं – ऐसा महर्षियों ने कहा है। जगत का संहार करने वाले हालाहल को गले में किसने धारण किया! महाप्रलय की कालाग्नि को अपने मस्तक पर धारण करने में कौन समर्थ था! संसार रूप अंधकूप में पतन के हेतु कामदेव को किसने भस्म किया! आप ऐसे हैं कि आपकी महिमा का वर्णन करने में कौन समर्थ है! एक तुच्छ प्राणी मैं करोड़ों जन्मों में भी आपके प्रभाव का वर्णन नहीं कर सकता। अतः आप मेरे ऊपर कृपा कर के मेरे प्रश्नों को बताएं।
|| इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में पहला अध्याय पूर्ण हुआ ||
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