महाशिवरात्रि क्यों है इतनी विशेष

कृष्णपक्ष में हरेक चंद्रमास का चौदहवां दिन या अमावस्या से पहले वाला दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक पंचांग वर्ष की सभी बारह शिवरात्रियों में महाशिवरात्रि, सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस त्यौहार का एक वैज्ञानिक तर्क भी है।
 
महाशिवरात्रि की रात पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की दशा कुछ ऐसी होती है कि मनुष्य के शरीर में ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर चढ़ती है। असल में यह एक ऐसा दिन होता है जब प्रकृति इंसान को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर धकेल रही होती है। इस घटना का उपयोग करने के लिए हमारी भारतीय परंपरा में यह एक खास त्योहार बनाया गया है।

इस त्योहार, महाशिवरात्रि को पूरी रात मनाया जाता है। इसे पूरी रात मनाने का मूल मकसद यह तय करना है, कि ऊर्जा का यह प्राकृतिक चढ़ाव या उभार अपना रास्ता पा सके। महाशिवरात्रि की पूरी रात लेटने का एक खास तरीका होना चाहिए। आप यह ध्यान अवश्य रखें कि अपना मेरुदंड सीधा रखें। आपकी कोशिश यह भी रहनी चाहिए कि सोएं नहीं। रात भर जागते रहें।
 
जो लोग अध्यात्म मार्ग पर हैं उनके लिए महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। लेकिन जो लोग पारिवारिक जिंदगी जी रहे हैं, उनके लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण है। महत्वकांक्षी इंसानों के लिए भी यह एक अहम दिन है। पारिवारिक जिंदगी जी रहे लोग महाशिवरात्रि के पर्व को शिव की शादी की सालगिरह के रूप में मनाते हैं।

मान्यता यह है कि महादेव शिव ने इस दिन अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। सांसारिक महत्वकांक्षा वाले लोग इसे उसी रूप में मनाते हैं। लेकिन तपस्वियों के लिए यह ऐसा विशिष्ट दिन है जब शिव कैलाश के साथ एक हो गए थे। जब वे पर्वत की तरह निश्चल और पूरी तरह शांत हो गए थे।
 
योग परंपरा में, शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती है, बल्कि उन्हें आदि गुरु माना जाता है। वे धरती पर प्रथम गुरु हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी। कई हजार सालों तक ध्यान में रहने के बाद एक दिन वे पूरी तरह शांत हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि का है। उनके अंदर कोई गति नहीं रह गई और वे पूरी तरह से निश्चल हो गए थे। कहते हैं, इसलिए तपस्वी महाशिवरात्रि को निश्छलता के दिन के रूप में मनाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अलावा योग परंपरा में भी इस दिन और इस रात को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि महाशिवरात्रि एक तपस्वी और जिज्ञासु के सामने कई संभावनाओं के द्वार खोलती है। भारत में अनेक ऋषियों और मनीषियों ने इसे गंभीरता से पहचाना। इसलिए उन्होंने इसका उपयोग एक साधना दिवस के रूप में, आध्यात्मिक प्रक्रिया को तेज करने के लिए परंपरा का एक हिस्सा बना दिया।

शिव का वर्णन हमेशा से तीन आंखों वाले के रूप में आता है। हमारे इस महादेश में, इस परंपरा में जानने का अर्थ किताबें पढ़ना भर नहीं है। जानने का अर्थ हमेशा जीवन में एक नई दृष्टि का खुलना है। आप अपने अंदर जो तर्क की स्पष्टता पैदा करते हैं, उसे कोई भी विकृत कर सकता है। लेकिन इस खुलने की प्रक्रिया में जब दृष्टि खुलती है, तभी स्पष्टता आती है। इसलिए सच्चे रूप में जानने का अर्थ है : आपकी तीसरी आंख का खुलना। आपकी तीसरी आंख ही वह आंख है जिससे दर्शन होता है।

दरअसल, मनुष्य की दो आंखें इंद्रियां हैं। ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुंचाती हैं। क्योंकि आमतौर पर जो आप देख पाते हैं वह सत्य नहीं है। ये दो आंखें सत्य को नहीं देख पातीं। इसलिए एक तीसरी आंख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा।
 
शिव का अर्थ है : 'वह जो नहीं है'। महाशिरात्रि की रात इसे अपने साथ होने दें, स्वयं को खो दें। फिर जीवन में एक नई दृष्टि खुलने की संभावना पैदा होगी। ईश्वरीय कृपा और अनुकंपा से सराबोर इस प्रेम और आनंद से भरी रात का जरूर आनंद लें।

Read More Similar Shiva Articles

Copyright © The Lord Shiva. All Rights Reserved.