अभीष्ट फलदाता भगवान शिव

हरियाणा के अम्बाला और पिपली (कुरुक्षेत्र) के मध्य में स्थित शाहाबाद का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ऋषि मार्कंडेश्वर मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र बन चुका है। मारकंडा नदी के मुहाने पर स्थित इस शिव मंदिर में जो भी भक्त मनोकामना पूर्ण करने के लिए सच्चे हृदय से लगातार 40 दिन तक भगवान के दरबार में जोत जगाता है, भगवान भोलेनाथ उसकी हर इच्छा पूर्ण करते हैं।

श्री मार्कंडेश्वर मंदिर सभा द्वारा मंदिर के पवित्र प्रांगण में प्रति वर्ष दो बार सामूहिक विवाहों का आयोजन भी किया जाता है।
 मंदिर में भगवान शंकर, माता पार्वती, श्री गणेश, स्वामी कार्तिकेय, ऋषि मार्कंडेय व श्री राम दरबार की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। यहां उपस्थित काले संगमरमर से निर्मित तीन फुट ऊंचा शिवलिंग व नंदी जी की मूर्ति भी विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
 
ऋषि मार्कण्डेश्वर मंदिर के अंदर प्रतिष्ठित मूर्तियां दर्शाती हैं कि कैसे भोलेनाथ जी की कृपा से कालजयी हो गए थे ऋषि मार्कण्डेय। ऋषि परम्परा में महर्षि मार्कण्डेय का नाम अग्रगण्य है। पुराणों के अनुसार, महामहिम मृकंड और उनकी पत्नी मरूद्धति के यहां कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या की। भोलेनाथ ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा। ऋषि मृकंड ने कहा कि भगवान मेरी कोई संतान नहीं है। अत: मैं आपसे एक पुत्र का वरदान चाहता हूँ।
 
भगवान शंकर ने कहा, ‘‘हे मुनि! यदि आप बुद्धिमान, सच्चरित्र तथा तेजस्वी संतान चाहते हैं तो वह केवल सोलह वर्ष तक ही जीवित रह सकेगा और यदि अज्ञानी तथा चरित्रहीन संतान चाहते हैं तो वह पूर्ण आयु वाला होगा।’’ मृकण्ड ऋषि ने कहा कि मैं गुणहीन पुत्र नहीं चाहता। मुझे तो गुणवान पुत्र ही चाहिए भले ही वह अल्पायु क्यों ही न हो। भगवान भोलेनाथ ‘तथास्तु’ कह कर अंतध्र्यान हो गए।

भगवान भोलेनाथ की अपार कृपा से उनके यहां गुणवान पुत्र पैदा हुआ। जब बालक 16 वर्ष का होने को आया तो पिता को चिंता हो गई तथा वह दुखी रहने लगे। एक दिन ऋषि मार्कण्डेय ने अपने पिता से दुख का कारण पूछा, तो पिता ने सारी बात बता दी। तब ऋषि मार्कण्डेय ने अपने पिता से निवेदन किया कि आप मेरे लिए चिंता न करें।

ऋषि मार्कण्डेय जी ने अत्यंत गंभीरता से पिता को आश्वस्त करने के लिए पिता से विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘भगवान आशुतोष कल्याण स्वरूप एवं अभीष्ट फलदाता हैं। मैं उनके मंगलमय चरणों का आश्रय लेकर, उनकी उपासना करके अमरत्व प्राप्त करने का प्रयत्न करूंगा।
 
तदनंतर वह माता-पिता के चरणों की धूलि मस्तक पर लगा कर भगवान शंकर का स्मरण करते हुए दक्षिण समुद्र तट पर पहुंचे। उन्होंने अपने नाम पर मार्कण्डेश्वर शिवङ्क्षलग की स्थापना की और त्रिकाल स्नान करके बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से भगवान मृत्युंजय की उपासना करने लगे। भगवान शंकर तो आशुतोष ठहरे। भोले बाबा ऋषि मार्कण्डेय जी की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए।

फिर मृत्यु के दिन ऋषि मार्कण्डेय जी अपने आराध्य की पूजा करके स्रोत्र पाठ करना ही चाहते थे कि चौंक गए। क्योंकि उनके कोमल कंठ में कठोर पाश पड़ गया था। दृष्टि उठा कर उन्होंने देखा तो भयानक काल (यमदूत) खड़ा था। ऋषि मार्कण्डेय जी ने ‘निवेदन किया’ महामते काल।’’ आप थोड़ी देर ठहरें, मैं अपने प्राण प्रिय मृत्युंजय स्रोत्र का पाठ कर लूं।

‘‘काल किसी की प्रतीक्षा नहीं करता ब्राह्मण। तुम्हारे लिए भी समय नहीं है’’ काल ने कहा। काल ने क्रोधित होकर ऋषि का प्राण हरण करने के लिए पाश खींचना ही चाहा कि वह दूर गिर कर पीड़ा से छटपटाने एवं भय से कांपने लगा। उक्त शिवलिंग से साक्षात भगवान शंकर ने प्रकट होकर अत्यंत क्रोध से काल पर कठोर पदाघात किया था।
 
भगवान शंकर ने काल से कहा, कि यह महाकाल अर्थात मेरा भक्त है। तब भगवान शिव के डर से यमदूत भाग गए। ऋषि मार्कण्डेय जी ने भगवान आशुतोष के चरणों में अपना मस्तक रख दिया। देवाधिदेव महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया। तभी से मार्कण्डेय ऋषि की 7 चिरंजीवियों के साथ आठवें चिरंजीवी के रूप में गणना की जाने लगी। मार्कण्डेय ऋषि ने जिस मृत्युंजय स्रोत का पाठ किया था उसका उल्लेख पदम पुराण में है।
 
ऋषि मार्कण्डेय जी को समर्पित इस मंदिर की बहुत मान्यता है। बुजुर्ग शिव भक्तों का कहना है, कि कई दशक पहले तक मारकंडा नदी का बहाव मंदिर के प्रांगण से होकर गुजरता रहा बाद में मंदिर बनने पर इसका रुख बदल गया।

Read More Similar Shiva Articles

Copyright © The Lord Shiva. All Rights Reserved.