विभिन्न द्रव्यों से शिव पूजा तथा उनके फल

भगवान शिव की पूजा विविध उपचारों से की जाती है। उपचारों की विविधता उपासक की कामना तथा साधनों की उपलब्धि पर निर्भर करती है। शास्त्रों के अनुसार, अलग-अलग प्रकार के द्रव्यों से शिवजी की पूजा के फल भी अलग-अलग होते हैं।
 
वीरमित्रोदयापूजाप्रकाश’ के अनुसार :
भगवान शिव को ब्रह्म-स्नान कराने वाला सभी पापों से छूटकर रुद्रलोक को प्राप्त करता है। कपिला गाय की पञ्चगव्य में कुशोदक मिलाकर (अभिषेक के) मंत्रों द्वारा स्नान कराना ब्राह्म-स्नान कहलाता है।
 
कपिलापञ्चगव्येन कुशवारियुतेन च।
स्नापयेत् मन्त्रपूतेन ब्राह्मं स्नानं हि तत्स्मृतम्।।
एकाहमपि यो लिङ्गे ब्राह्मं स्नानं समाचरेत्।
विधूय सर्वपापानि रुद्रलोके महीयते।।
 
जो व्यक्ति कोल्हू से निकले तिल के तेल से शिवलिंग का अभिषेक करता है, वह शिवपद प्राप्त करता है। जो कपूर और अगुरु मिश्रित जल से लिंग को स्नान कराता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर शिव-सायुज्य को प्राप्त करता है, जो वस्त्र से छाने हुए जल से लिंग को स्नान कराता है वह अपनी कामनाओं को पूरा कर वरुणलोक को प्राप्त करता है।

य: पुमांस्तिलतैलेन करयन्त्रोद्भवेन च।
शिवाभिषकं कुरुते स शैवं पदमाप्रुयात्।।
कर्पूरागुरुतोयेन यो लिङ्गं स्नापयेत्सकृत्।
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवसायुज्यमाप्रुयात्।।
वस्त्रपूतेन तोयेन यो लिङ्गं स्नापयेत्सकृत।
सर्वकामसुतृप्तात्मा वारुणं लोकमाप्रुयात्।। 
 
अष्टांग अर्ध्य को निवेदन करने वाला दस हजार वर्षों तक रुद्रलोक में निवास करता है।

योष्टाक्र्गमर्घमापूर्य लिङ्गमूर्धनि नि:क्षिपेत्।।
दशवर्षसहस्त्राणि रुद्रलोके महीयते। 

सुंदर, रंगीन एवं मुलायम वस्त्र समर्पित करने वाला हजारों वर्षों तक शिवलोक में निवास करता है। इसी प्रकार श्वेत या पीले रंग का पट्टसूत्रादि से निर्मित तीन धागों वाला यज्ञोपवीत अर्पित करने वाला वेदान्त का ज्ञाता होता है।
 
त्रिवृत् शुक्लं सुपीतं वा पट्टसूत्रादिनिमतम्।
दत्तवोपवीतं रुद्राय भवेद्वेदान्तपारग:।। 

चन्दन, अगुरु, कपूर तथा कुकुमादि से लिंग का लेपन करने वाला करोड़ों कल्पों तक स्वर्ग में निवास करता है।

चन्दनागुरुकर्पूरै: श्लक्ष्णपिष्टै: सकुङ्कुमै:।
शिवलिङ्गं समालिप्य कल्पकोटिं वसेद्दिवि।।

पर्वत या जंगल में स्वत: उत्पन्न ताजे छिद्र तथा जन्तुओं से रहित फूल या पत्तों से शिवजी की पूजा का वही फल होता है जो तपस्वी वेदज्ञ ब्राह्मण को सुवर्ण दान देने से होता है। अर्थात सुवर्ण के दान के फल के बराबर पत्र-पुष्प से पूजा करने पर होता है। अपामार्ग से चतुर्दशी के दिन शिव की पूजा करने वाला शिवसारूप्य को प्राप्त करता है। इसी प्रकार पंचाक्षर-मंत्र से  बिल्वपत्रों द्वारा शिव की पूजा करने वाला शिवजी के पद को प्राप्त कर लेता है।
 
अपामार्गदलैर्यस्तु पूजयेद्गिरिजापतिम्।
स याति शिवसारूप्यं चतुर्दश्यां न संशय:।।
पञ्चाक्षरेण मन्त्रेण बिल्वपत्रै: शिवार्चनम्।
करोति श्रद्धया युक्त: स गच्छदैश्वरं पदम्।। 

भगवान शिव को बिल्वपत्र इतना प्रिय है कि सूखे हुए या बासी बिल्व पत्रों से पूजा करने वाला भी सभी पापों से मुक्त हो जाता है। 

शुष्कै पर्युषितैर्वापि बिल्वपत्रैस्तु यो नर:।
पूजयंस्तु महादेवं मुच्यते सर्वपतकै:।। 
 
गुग्गल में घी डालकर जो भगवान शिव को धूप अर्पित करता है वह रुद्रलोक को प्राप्त गणपति के पद को प्राप्त करता है। 

गुग्गलं घृतसंयुक्तं शिवे यश्च निवेदयेत्।
रुद्रलोकमावाप्रोति गाणपत्यं च विन्दति।। 

घी या तिल के तेल का दीपक शिव के निमित्त प्रदान करने वाला व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। कार्तिक मास में दीपमालिका करने वाला रुद्रलोक को प्राप्त होता है। भगवान शिव को घी या गुड़ आदि से बने पदार्थों तथा खीर आदि का नैवेद्य अर्पित करने वाला सहस्रों वर्ष तक रुद्रलोक में निवास करता है, उसकी दुर्गति नहीं होती तथा वह स्वर्गलोक को भोगता है। 
 
पायसं गृतसंयुक्तं महेशाय प्रयच्छति।
न दुर्गतिमवाप्रोति स्वर्ग लोकं च गच्छति।। 

पांच सुगन्धियों (जैसे-इलायची, कपूर तथा ककोल आदि) से युक्त ताम्बूल को भगवान शिव को अर्पण करने वाला करोड़ों  वर्षों तक रुद्रलोक में निवास करता है। सफेद या गेरुवे या लाल कपड़े की ध्वजा को अर्पित करने वाला भी शिवलोक को प्राप्त करता है।

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