निर्विकारी पर होती है शंकर की कृपा :
मानस रामायण की रचना भगवान भोलेशंकर ने की है। भोलेशंकर राम नाम के रसिक हैं। शमशान घाट एवं वहां जलने वाले मुर्दे की भस्म को शरीर में धारण करने वाले भोलेशंकर पूर्ण निर्विकारी हैं। उन्हें विकारी मनुष्य पसंद नहीं हैं। जब मनुष्य की मौत हो जाती है और मुर्दे को जलाया जाता है तब जलने के बाद मुर्दे की भस्म में किसी भी प्रकार का विकार नहीं रहता। मनुष्य के सारे अहंकार तन के साथ जलकर भस्म हो जाते हैं। तब भोलेनाथ उस र्निविकारी भस्म को अपने तन में लगाते हैं।
सती कथा के अनुसार - जब माता सती ने भोलेनाथ शिव के मना करने पर भी अपने मन में आये संशय को दूर करने के लिए श्रीराम के ईश्वर होने की परीक्षा ली और माता सीता का वेश धारण किया, तब शिव जी ने सती का त्याग कर दिया। इसके बाद जब माता सती ने राजा हिमालय के घर देवी पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिव जी की निर्विकारी रूप से पूजा की। तब शिव जी ने उन्हें स्वीकार कर लिया। इसका तात्पर्य यह है कि शिवकृपा निर्विकारी को ही प्राप्त होती है।