बद्रीनाथ मंदिर जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेष से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है|
ये पंच-बद्री में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
2.कथा
बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचारयात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
मन्दिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है।
4. लोक कथा:
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नील कंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। ये जगह पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित थी। भगवान् विष्णु जी अपने ध्यान योग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के समीप ये जगह बहुत भायी। उन्होंने चरणपादुका(नील कंठ पर्वत के समीप) बाल रूप में अवतरण किया और ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का ह्रदय द्रवित हो उठा और वो और शिव जी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पुछा की बालक तुम्हे क्या चहिये? तो बालक ने ध्यान योग करने हेतु वो जगह मांगी। और इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से वो जगह अपने ध्यान योग हेतु प्राप्त की। जो जगह आज बद्रीविशाल के नाम से सर्व विदिद है।
<h2 style="\"color:" red;\"=""> 5. बद्रीनाथ नाम की कथा:
जब भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत ही ज्यादा हिम पात होने लगा। भगवान विष्णु बर्फ में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का ह्रदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर(बद्री) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगी। भगवान विष्णु को धुप वर्षा और हिम से बचने लगी। कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा की माता लक्ष्मी बर्फ से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा की हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा। और क्यूंकि तुमने मेरी रक्षा बद्री रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बद्री ने तप किया तह वो ही जगह आज तप्त कुण्ड के नाम से जानि जाती है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।