Mahashivratri

Mahashivrati - महाशिवरात्रि 

 
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है।
हिंदी विक्रमी सम्वत के फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।

माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।

तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत के विधान - 

इस दिन शिवभक्त, शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते हैं। शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।

इस दिन भगवान शिव की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने का स्मरण दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है, जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है।
 
महाशिवरात्रि व्रत विधि - 

महाशिवरात्रि व्रत के दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाये जाते है। यदि निकट में कोई शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है।

रात्रि को जागरण करके शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके महाशिवरात्रि व्रत पूर्ण करके खोला जा सकता है।

महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इसके करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपज जाता है। ईशान संहिता में महाशिवरात्रि की महत्ता का उल्लेख कुछ इस प्रकार किया गया है-

शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं

महाशिवरात्रि व्रत विशेष - 

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं।

शिव का अर्थ है कल्याण
। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है। ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।

चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।
 
महाशिवरात्रि व्रत के अनुष्ठान

कारोबार वृद्धि के लिए - महाशिवरात्रि के सिद्ध मुहर्त में पारद शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करने से व्यवसाय में वृद्धि व नौकरी में तरक्की मिलती है।

बाधा नाश के लिए - 
शिवरात्रि के प्रदोष काल में स्फटिक शिवलिंग को शुद्ध गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान करवाकर धूप-दीप जलाकर निम्न मंत्र का जाप करने से समस्त बाधाओं का शमन होता है। 

ॐ तुत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात्

बीमारी से छुटकारे के लिए - 
शिव मंदिर में लिंग पूजन कर दस हज़ार मंत्रों का जाप करने से प्राण रक्षा होती है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करें।

शत्रु नाश के लिए - 
शिवरात्रि को रूद्राष्टक का पाठ यथासंभव करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। मुक़दमे में जीत व समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

मोक्ष के लिए - 
शिवरात्रि को एक मुखी रूद्राक्ष को गंगाजल से स्नान करवाकर धूप-दीप दिखा कर तख्ते पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। शिव रूप रूद्राक्ष के सामने बैठ कर सवा लाख ॐ नम: शिवाय मंत्र जप का संकल्प लेकर जाप आरंभ करें। मन्त्र जाप शिवरात्रि के बाद में भी जारी रखें।

रुद्राभिषेक से लाभ - 
यदि वर्षा चाह्ते है तो जल से रुद्राभिशेक करे, व्यधि नाश के लिये कुशा से करे यदि पशुओ की कामना चाह्ते है तो दहि से रुद्राभिषेक करे। श्रीः की कामना चाहते है तो गन्ने के रस से रुद्रभिशेक करे। 

महाशिवरात्रि व्रत कथा - एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव शंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिव जी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई-

'एक गांव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकार को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।

अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मुझे मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ, अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया।

रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो  बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़फ रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। भोर होने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े।

मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञा बद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'

उपवास
, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।

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Mahashivratri is a major festival of Hindus. This is the main festival dedicated Lord ShivaPhalgun Masa Krishna Chaturdashi is celebrated as Mahashivaratri festival. It is believed that on this very day, at the beginning of creation, Lord Shankar was descended from Brahma as Rudra at midnight.

Lord Shiva when perform Tandava during the time period of Pradosh on the same day in the Vela of the Holocaust destroy the universe with the power of the third eye. That is why this day is called Mahashivratri or Kalratri. Shiva, who makes his better half to the immense beauty of the three Bhuvanas and the Sheelvati Gaura, He is surrounded by ghosts and vampires. His appearance is very strange.

The body is consumed by dust, necklace of snakes, venom in the throat, jagat-tarini holy ganga in hairs(jata) and power of flame in the forehead. Shiva, who accepts the bull as a vehicle, always bless the devotee with goodwill and prosperity even when he looks like a demon and immortal.

Procedure of Mahashivratri Fast :

On this day, devotees of Lord Shiv go to Shiva temples, offer bilwa leaves etc. on the Shivaling, worship whole day, perform fast and awaken(jagran) at night. offering bilwa leaves at the Shivaling, fasting and night awakening indicates a special performance(karma).

Marriage of Lord Shiva takes place on this day, so Shiva's procession is taken out at night. In fact, the ultimate festival of Shivaratri itself reminds the Supreme Power, incarnate on the creation. Here the word night signifies the moral fall in Ignorance due to the darkness. The Supreme Soul is the sea of knowledge who leads human beings from darkness to light or from unknown to truth with the right knowledge.

Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, Shudras, men and women, children, young and old people all can observe this fast. In the process of this fast, observation of mahashivratri fast is performed after taking bath in the  morning.

Process of Mahashivratri Fast :

On this day, after filling water in an earthen pot, putting bilwa-leaf, aka dhatura flowers, rice, etc., on it and all are offered at the 'Shivaling'. If there is no shiva temple nearby, then devotee can make a Shivaling from pure wet soil and perform worship. Awakening at the night and listening to the recitation of Shiv Puran is considered the part of the process of the Mahashivratri fast.

On the very next day, the fast is completed by performing Havan with barley, sesame seeds, kheer and bilwa patra.

Mahashivaratri is the holiest day of Lord Shankar(Shiva). This is the penance through which one can purify his soul. By performing this fast, all the sins are destroyed. Violent tendencies change. Kindness is generated towards innocent creatures. Its importance is described in Ishaan Samhita as -

शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
(shivratri vratam naam sarvpapam pranashanm, aachandaal manushyanam bhukti mukti pradayakam)

The Lord of Chaturdashi Tithi is Shiva. Therefore, it has been called the supreme auspicious in astrological scriptures. Generally, Shivaratri comes every month. But only  Krishna Paksha(dark luner side of moon) Chaturdashi(fourteenth day) of Falgun mass(month) has been called Mahashivratri. According to astrological calculations, Suryadev (The Sun) has also come to Uttarayan by this time and this perticular period of season change is said to be extremely auspicious.

Shiva means Kalyaan(welfare). Shiva always bless everyone with the welfare. Therefore, by performing simple fast processes on Mahashivaratri, the desired happiness is attained.

According to astrological mathematics, on the Chaturdashi tithi(date), the moon reaches its state of attenuation. Due to which the weak moon is unable to give energy to the creation. The direct connection of the moon has been said to the mind. When the mind is weak, physical anguish surrounds the creature and a state of depression arises. This situation leads to suffering.

Moon is adorned on Shiva's forehead. Therefore, Chandra Dev is taken to seek the blessings of Lord Shiva. Mahashivaratri is the favorite date of Shiva. Hence, often astrologers suggest worship of Shiva on Shivratri to get rid of troubles. Shiva is eternal. Shiva is also a link between destruction and restoration of the world. Holocaust means pain, relocation means happiness.

Therefore, in astrology, considering the importance of Shiva as the basis of happiness, it is said that performence of many kinds of rituals on Mahashivratri is very much important for the devotee.

For Business Growth : Establishing Pard Shivling by consecrating prana in the siddha muhrat of Mahashivratri, promotes business growth and job growth.

To Destroy the Obstacle : 
In the pradosh period of Shivratri, all obstacles are eliminated by giving a bath to the crystalline Shivling with pure ganga jal, milk, curd, butter, honey and sugar and lighting incense and deep. Chanting the following mantra is also the part of this worship. 

॥ॐ तुत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात्॥
(Om Tutpurushaya Vidmahe Mahadevaya Dheemahi Tanno Rudrah Prachodayata)

To Get Rid of the Disease : Devotee can protects the life by worshiping the shivaling in the Shiva temple with the chanting of Mahamrityunjaya Mantra ten thousand times. Chant Mahamrityunjaya Mantra on the rosary(Mala) of Rudraksha.

For Win at Enemy : By reciting the Rudrashtak on Shivratri devotee should achieve enemy destruction, devotee gets freedom from enemies. Victory and all pleasures are obtained in the court cases.

For salvation : Establish single faced (Ek Mukhi) Rudraksha on Shivaratri by bathing it with the ganga jal and showing incense and lamps(deep) and laying a clean cloth on the planks. After sitting in front of Shiva Rupa Rudraksha and start chanting with a pledge of one and a quarter million(sava lakh) ॐ नम: शिवाय। (Om Namah Shivay) mantra chanting. 

Benefits of Rudrabhisheka : For the Desire of rain Rudrabhishek should be done with the water. If devotee wants to get the relief from disease then Rudrabhishek should be done with the grass(kusha).
If devotee have desires for the animals the Rudrabhishek with curd is beneficial. Rudrabhishek with the juice of sugercane can help devotee to get the prosperity.


Story of Mahashivratri Fast - Story of the Hunter : Once Parvati ji asked Lord Shiva Shankar, 'What is the best and simple fast-worship, from which the beings of the dead land(mritiyulok) get your grace easily?' In the reply, Shivji told this story by telling Parvati to observe the fast of 'Shivratri' - 'A hunter lived in a village.

He raised his family by killing animals. He was indebted to a moneylender, and could not repay his loan on time. The angry moneylender took the hunter captive in Shivamath. Coincidentally it was Shivratri on that day.

The hunter sat in meditative mode and kept listening to religious discussions related to Lord Shiva. He also heard the story of Shivaratri fast on Chaturdashi. Just before dusk, the moneylender called him and talked about repaying the loan. The hunter left the bond, by promising to return the loan on the very next day.

Like his daily routine he went out for hunting in the forest. But due to being in captivity all day, he was disturbed by hunger and thirst. To hunt, he started making a halt on the bilwa tree at the edge of a pond. Under the bilwa tree there was the Shivaling which was covered with bilwa leaves. Hunter did not saw that.

The twigs he broke while making the halt fell on the Shivaling by chance. In this way, hungry and thirsty hunter was also fasted through out the day and bilwa leaves were also placed on Shivaling. After passed a quarter phase of night, a pregnant deer came to drink water at the pond.

As soon as the hunter drew an arrow on the bow, the antelope said, 'I am pregnant. Will deliver soon. You will kill two creatures together, which is not right. I will give birth to the child and will be presented to you soon, then kill me. ' The hunter loosened the cross and the deer disappeared into the wild bushes.

Shortly after, another antelope emerged from there. The hunter was now over the moon. After coming close, he put the bow on the arrow. Seeing him, the deer politely pleaded, 'O Human! I just came out from the season a while ago. I am lustful. I am wandering in search of my beloved. I will meet my husband and come to you soon.' The hunter let him go as well.

He was perturbed over losing his prey twice. He was in all sort of thoughts. The last phase of the night was just to pass. Then another antelope escaped with her children. It was a golden opportunity for hunter. He did not take long to shoot arrows at the bow. He was about to release the arrow that the antelope said, 'O Human!' I will return after give these children to their father. Do not kill me this time.

The hunter laughed and said, leave the food in front, I am not such a fool. I have lost my prey twice before. My children must be suffering from hunger and thirst. In response, the deer again said, as you are maltreating your children, just like me too. Therefore, in the name of children, I am seeking life for a while. Hey Human! Trust me, I promise to leave them to their father and return immediately.

Hearing the deer's low voice, the hunter felt pity on him. He let that deer escape too. In the absence of hunting, the hunter sitting on the bilwa tree and throw down bilwa leaves by breaking from the tree branches. When the night dawn to broke, a strong deer came on the same path. The hunter thought that he would surely hunt it.

Seeing the trunk of the hunter, the antelope spoke in a polite voice, O brother! If you have killed three antelopes and small children coming before me, do not delay in killing me too, So that I do not have to suffer a single moment by disconnecting them. I am the husband of those deer. If you have given them life, please give me some time too. I will meet them and appear in front of you.

As soon as he heard the deer, the whole night cycle happenings flash backed in memory of the hunter, he narrated the whole story to the deer. Then the deer said, 'The way my three wives have gone as promised, They will not be able to follow the promise with my death. So as you have left him as a confidant, Let me go the same way. I will appear in front of you with all of them soon.'

The violent heart of the hunter was purged by fasting, night-awakening and  placing the bilwa leaves on Shivaling. Bhagavad Shakti placed in him. The bow and arrow were easily left from his hand. Due to the grace of Lord Shiva, his violent heart filled with compassionate feelings. He started burning in the flame of repentance remembering his past deeds.

Shortly afterwards, the antelope appeared with the family in front of hunter so that he could hunt them, but the hunter was greatly embarrassed after seeing such veracity, sattvikta and collective love of wild animals. There was a burst of tears comes out from his eyes. By not killing that antelope family, the hunter removed his hard heart from living violence and made him soft and kind forever.

All the numan(Dev Samaj) from Haven(Devalok) were also watching this event. As soon as the event ended, the Gods and Goddesses start showering the flowers. Then the hunter and antelope family attained Salvation(moksha).
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