Kanwar Yatra :
The Kanvar Yatra or Kavad Yatra is annual pilgrimage of devotees of Shiva, known as Kanvarias, to Hindu pilgrimage places of Haridwar, Gaumukh and Gangotri in Uttarakhand to fetch holy waters of Ganges River, Ganga Jal, which is later offered at their local Shiva temples.
The Yatra takes place during the sacred month of Shravan (Saawan) (July -August), according to the Hindu calendar. Kanwar Yatra is named after the kanvar, a single pole (usually made of bamboo) with two roughly equal loads fastened or dangling from opposite ends. The kanvar is carried by balancing the middle of the pole on one or both shoulders.
Kanvar-carrying pilgrims, called Kanvarias, carry covered water-pots in kanvars slung across their shoulders. This practice of carrying Kavad as a part of religious pilgrimage, especially by devotees of Lord Shiva, is widely followed throughout India.
The month of Shravan is dedicated to Lord Shiva and most devotees observe a fast on Mondays during the month, as it also falls during the chaturmas period, traditionally set aside for religious pilgrimages, bathing in holy rivers and penance. During the annual Monsoon season thousands of saffron-clad pilgrims carrying water from the Ganges in Haridwar, Gangotri or Gaumukh, the glacier from where the Ganges originates.
Other holy places on the Ganges, like Sultanganj, the only place where the river turn north during its course, and return to their hometowns, where they later they perform abhisheka (anointing) the Shivalingas at the local Shiva temples, as a gesture of thanksgiving.
While most pilgrims are men, a few women also participate in Yatra. Most travel the distance on foot, a few also travel on bicycles, motor cycles, scooters, mini trucks or jeeps. Numerous Hindu organizations and other voluntary organizations like local Kanwar Sanghs, the Rashtryia Swayam Sewak Sangh and the Vishwa Hindu Parishad.
Setup camps along the National Highways during the Yatra, where food, shelter, medical-aid and stand to hang the Kanvads, holding the Ganges water is provided.
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श्रावण मास का शुभारम्भ होते ही भगवान भोले जो आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं, को प्रसन्न करने का विधान प्रारम्भ हो जाता है. घरों में भी प्राय श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, करते हैं. कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है यात्राएँ जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं.
सम्पूर्ण भारत में भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ लिए हुए (कांवड़ में कंधे पर बांस तथा उसके दोनों छोरों पर गंगाजली रहती है) गोमुख (गंगोत्री) तथा अन्य समस्त स्थानों पर जहाँ भी पतित पावनी गंगा विराजमान हैं, से जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं.
कांवड़ यात्रा वास्तव में एक संकल्प होती है, जो श्रद्धालु द्वारा लिया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान यात्रियों द्वारा नियमों का पालन सख्ती से किया जाता है. कांवड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है. इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता. बिना स्नान किए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते. तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता.
स्त्री, पुरुष, बच्चे, प्रौढ़ परस्पर एक दूसरे को भोला या भोली कहकर ही सम्बोधित करते हैं. कांवड़ ले जाने के पीछे अपना संकल्प है कुछ लोग “खडी कांवड़” का संकल्प लेकर चलते हैं, वो जमीन पर कांवड़ नहीं रखते पूरी यात्रा में.
कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कांवड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कांवड़ रखी हो उसके आगे बगैर कांवड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती है. पैरों में पड़े छाले, सूजे हुए पैर, केसरिया बाने में सजे कांवड़ियों का अनवरत प्रवाह चलता ही रहता है अहर्निश! स्थान - स्थान पर कांवड़ सेवा शिविर आयोजित किये जाते हैं, जिनमें निशुल्क भोजन, जल, चिकित्सा सेवा, स्नान विश्राम आदि की व्यवस्था रहती है.
मार्ग स्थित स्कूलों, धर्मशालाओं, मंदिरों में विश्राम करते हुए ये कांवड़ धारी, रास्ते में स्थित शिव मंदिरों में पूजार्चना करते हुए नाचते गाते, “बम बम बोले बम भोले” की गुंजार के साथ शिवरात्री (श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी + चतुर्दशी) को जलाभिषेक करते हैं देश के अन्य स्थानों में किसी न किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण श्रावण मास में ऐसे ही विशिष्ठ आयोजन रहते हैं. श्रावण मास की शिवरात्रि के पर्व से लगभग 10 - 12 दिन पूर्व से चलने वाला यह जन सैलाब आस्था, श्रद्धा, विश्वास के सहारे ही अपनी कठिन थकान भरी यात्रा पूरी करता है.
अंतिम दो दिन ये यात्रा अखंड चलती है जिसको डाक कांवड़ कहा जाता है. निरंतर जीप, वैन, मिनी ट्रक, गाड़ियाँ, स्कूटर्स, बाईक्स आदि पर सवार भक्त अपनी यात्रा अपने घर से गंतव्य स्थान की दूरी के लिए निर्धारित घंटे लेकर चलते हैं और अपने इष्ट के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं. बहुत सी कांवड़ तो बहुत ही विशाल होती हैं जिनको कई लोग उठाकर चलते हैं.
इस तरह कठिन नियमों का पालन कर कांवड़ यात्री अपनी यात्रा पूर्ण करते हैं. इन नियमों का पालन करने से मन में संकल्प शक्ति का जन्म होता है.