पाप हंता और मोक्षदाता भगवान शिव

भगवान शिव मनुष्यों के पापहंता और मोक्षदाता हैं। ‘शि’ पापनाशक अर्थ में है और ‘व’ मोक्षदायक अर्थ में। शिव शब्द कल्याण का वाचक है और कल्याण शब्द मुक्ति का। जिसकी वाणी में शिव-यह मङ्गलमय नाम विद्यमान है, उसके करोड़ों जन्मों का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है।

आदि शक्ति पार्वती जी के संग भगवान शिव अपने नित्य धाम शिव लोक में विराजते हैं। प्रकृति के तीन गुण जीव को सदा बांधे रखते हैं, जो इनसे मुक्त है वहीं ब्रह्म भाव को प्राप्त है तथा उसे ही आध्यात्म का ज्ञान है।
 
भगवान शिव आध्यात्म ज्ञान के प्रदाता हैं। श्री हरि जी की भक्ति प्रदान करने में एकमात्र सक्षम भगवान शिव ही हैं। एक समय गंधर्वराज ने भगवान शिव की अनन्य भक्ति की तथा वर के रूप में श्री हरि की भक्ति तथा परम वैष्णव पुत्र की प्राप्ति का वर मांगा। तब भगवान शिव की कृपा से गंधर्वराज को भक्तराज नारद जी के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई।

जो अपनी स्वरूपभूत विविध शासन-शक्तियों द्वारा इन सब लोकों पर शासन करते हैं, वह रुद्र रूप शिव एक ही हैं। वह भगवान शिव निर्विकार होते हुए भी अपनी माया से विराट विश्व का आकार धारण कर लेते हैं। जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वती से सुशोभित है, जो विश्व की उत्पत्ति, स्थिति, लय आदि के एकमात्र कारण हैं।
 
वह भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने वाले कल्याण स्वरूप भगवान हैं। संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने भगवान शिव की कृपा से ही रामचरितमानस जैसे दिव्य भक्ति प्रधान ग्रंथ की रचना की। देव, दानव, मानव सभी भगवान शिव का आश्रय प्राप्त कर निर्भय हो जाते हैं।

भगवान शिव की अविचल भक्ति के प्रभाव से ही दशमुख रावण ने तीनों भुवनों का निष्कंटक राज सहज ही प्राप्त कर लिया।
जिस प्रकार नीच व्यक्ति समृद्धि को पाकर अहंकार से युक्त हो जाता है, उसी प्रकार जब रावण अभिमान में आकर अपने भुजाबल से कैलाश को उठाने लगा तब भगवान शिव ने अपने पैर के अंगुष्ठ की नोक से कैलाश को हल्के से दबाया तो रावण की प्रतिष्ठा पाताल में भी दुर्लभ हो गई।
 
संसार के भय को दूर करने वाले भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय उत्पन्न कालकूट विष जो ब्रह्मांड का नाश कर सकता था, उसे अपने कंठ में धारण किया। एक जब भगवान विष्णु ने भगवान शिव के चरणों में 1000 कमल चढ़ाने का निश्चय किया तो 1 कमल कम पड़ गया। तब उन्होंने अपना ही नेत्र कमल उखाड़ कर चढ़ा दिया। उनकी भक्ति की पराकाष्ठा के फल स्वरूप भगवान शिव ने उन्हें त्रिभुवन की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र प्रदान किया।

भगवान शिव जगत के आदिकारण हैं और प्रणव के द्वारा जानने योग्य हैं। वह अजन्मा हैं नित्य हैं, कारणों के भी कारण हैं, सतपुरुषों को आनंद प्रदान करने वाले हैं। जो श्री राम जी द्वारा पूजित हैं। तीनों वेद जिनके नेत्र हैं। जो विघ्नराज गणेश जी तथा कार्तिकेय जी के पिता तथा नंदी के स्वामी हैं तथा सर्पों को आभूषण रूप में धारण करते हैं।

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद। जय गौरीपते शम्भो जय चंद्रार्धशेखर।।

हे सभी गुणों से आतीत, सबको वर प्रदान करने वाले, गौरीपते, चंद्रार्धशेखर, शिव शम्भु, आपकी जय हो

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