महाशिवरात्रि व्रत के नियम और विधि विधान

महाशिवरात्रि व्रत के नियम और विधि विधान

शास्त्र कहते हैं कि संसार में अनेकानेक प्रकार के व्रत, विविध तीर्थस्नान, नाना प्रकार के दान, विभिन्न प्रकार के यज्ञ, तरह-तरह के तप तथा जप आदि भी महाशिवरात्रि व्रत की समानता नहीं कर सकते। अतः अपने हित साधनार्थ सभी को इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए। 
 
महाशिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण साधना है। इससे सदा सर्वदा के लिए भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शिव रात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है एवं चारों पुरूषार्थो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है। यदि संभव हो सके तो इस व्रत को जीवन पर्यंत करें नही तो चौदह वर्ष के बाद पूर्ण विधि विधान के साथ उद्यापन कर दें। 
 
व्रतराज के सिद्धांत और पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। परन्तु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार, जब प्रदोष काल रात्रि का आरंभ एवं निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिवरात्रि का व्रत होता है। 
 
समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण, पूजा, उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है। 
 
इससे व्यक्ति जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है। इस लोक में सुख भोगकर व्यक्ति अन्त में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। जीवन पर्यन्त इस विधि से श्रद्धा विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। 
 
यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सांयकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जनों के अलावा सन्यासी लोगों के लिए महारात्रि की साधना एवं गुरूमंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है। 
 
अपनी गुरू परम्परा के अनुसार, सन्यासी जन महारात्रि में साधना करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदात्री होती है। इस समय में किए गए दान, पुण्य, शिवलिंग की पूजा, स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है। इस सिद्ध मुहूर्त में पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के बाद अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल या कार्यालय में स्थापित करने से घर परिवार व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है।

परमदयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। अटके हुए मंगल कार्य सम्पन्न होते है। कन्याओं की विवाह बाधा दूर होती है।

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