तुंगनाथ मंदिर (उतराखंड)

State: Uttarakhand
Country: India

भारत के उतराखंड राज्य में तुंगनाथ मंदिर स्थित है. तुंगनाथ मंदिर के विषय में एक प्राचीन पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा महाभारत के मुख्य पात्रों से संबन्धित है. कथा के अनुसार जब पांच पांडवों पर अपने परिवार के भाईय़ों की हत्या का आरोप लगा, इस अपने भाईयों की हत्या करने का उन्होन जो पाप किया था, उस पाप के श्राप के रुप में उन्हें बैल का रुप दे दिया गया. पांडवों ने इन स्थानों में प्रत्येक मंदिर में पांच केदार का निर्माण किया गया. इस दुनिया में तुंगनाथ मंदिर को चोटियों का स्वामी कहा जाता है.

इस मंदिर के विषय से जुडी एक मान्यता प्रसिद्ध है. कि यहां पर शिव के ह्रदय और बाहों की पूजा होती है. इस मंदिर की पूजा का दायित्व यहीं के एक स्थानीय व्यक्ति को दिया गया है. समुद्रतल से इस मंदिर की ऊंचाई 12000 फीट से अधिक है. इसी कारण इस मंदिर के सामने पहाडों पर बर्फ जमी रहती है. अन्य चार धामों की तुलना में यहां पर श्रद्वालुओं की भीड कुछ कम होती है. परन्तु फिर भी यहां अपनी मन्नतें
पूरी होने की ख्वाहिश में आने वालों की संख्या कुछ कम नहीं है.

इस मंदिर में तीर्थयात्री हजारों की संख्या में प्रत्येक वर्ष पहुंचते है. इस स्थान से एक अन्य कथा जुडी हुई है, कि भगवान राम से रावण का वध करने के बद ब्रह्माहत्या शाप से मुक्ति पाने के लिये उन्होनें यहां पर शिव की तपस्या की थी. तभी से इस स्थान का नाम चंद्रशिला भी प्रसिद्ध है. यहां से बद्रीनाथ, नीळकंठ, पंचचूली, सप्तचूली, बंदरपूंछ, हाथी पर्वत, गंगोत्री व यमनोत्री के दर्शन भी होते है. तुंगनाथ मंदिर अपने धार्मिक महत्व के साथ साथ अपने प्राकृ्तिक सौन्दर्य के लिए भी विख्यात है. यहां की यात्रा का कुछ मार्ग जंगलों से होकर तय करना पडता है. ताजी हवा और प्रकृ्ति के स्वयं को निकट देखना, एक अलग तरह का अनुभव कराता है. यहां की यात्रा दिखने में कुछ दुर्गम जरूर दिखती है. परन्तु अनुभव में यह रास्ता बिल्कुल सीधा खडा होने के कारण यह यात्री को स्वर्ग कि सीढियों के समान सुख देती है. मार्ग में भगवान गणेश के छोटे
मंदिर भी पडते है. जिनके आशिर्वाद से आगे की यात्रा विध्नरहित पूरी होती है. ठंडी, ताजी हवा यात्री को थकावट का अहसास नहीं होने देती है.
अन्य रंगों के फूलों के साथ साथ यहां सफेद रंग के फूल मुख्यत: उगते है. तुंगनाथ मंदिर कथा पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले. वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे. भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे. दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए. भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं
में जा मिले. पांडवों को संदेह हो गया था. अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया. अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ. अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदारकहा जाता है. यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं.

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